सफ़र ये कहा इतना आसान है ,
हर कदम पे मुकामे तूफ़ान है !
टूटा ज़रूर है बिखरा वो मगर नहीं ,
उस शक्श की यही एक पहचान है !
सैकड़ो तूफान समेटे है ख़ुद में वो ,
मगर फिर भी खामोश बेजुबान है !
है फिर कोई ये साजिश नई 'आज़ाद ',
सुना है बहार हम पे फिर मेहरबान है !
वाह .... क्या खूब कहा है ”है कोई साजिश........,बहार हम पे फिर भी मेहरबान है।
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